Monday, December 25, 2017

Will Not Be Late (देर न हो जाएँ)


बहुत सारे बहाने और सही समय का इंतजार... हममें से बहुतों की life इन्ही दो के सहारे बीत रही है। न दिशा का पता है और न ही मंजिल का, हम बस चल रहे है। अनजान बने हुए भीड़ के पीछे- पीछे। और जब तक ये जान पाते है कि कितना कुछ छूट गया है, तब तक देर हो चुकी होती है।
सोते हुए सपने तो देखे जा सकते है, पर उन्हें पूरा करने के लिए जागना पड़ता है। थोड़ी देर और सोते रहने का सुख हमें समय पर जागने नही देता। हमारी कई इच्छाएं पूरी नही होती और आधे- अधूरे कामों की list बढती जाती है। सही समय पर फैसलों में देरी का असर हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। कभी रिश्ते बिखर जाते है तो कभी सेहत, तो कभी आर्थिक हालात।

motivational speaker एंथोनी रॉबिन्स ‘awaken the joint within’ में कहते है,’क्या जरूरी है,  कहां focus करना और और मंजिल तक पहुचने के लिए क्या करना होगा, ये तीन फैसले हमारी life को बनाते या बिगाड़ते है। success और unsuccess के बीच ये अंतर ये फैसले ही पैदा करते है।‘

Value System को बदलना

एक बार पीछे मुड़कर देखे। पायेंगे कि कितनी ही परेशानियों को अच्छे फैसलों से टाला जा सकता था। spiritual व् motivational गुरु स्वामी सुखबोधानन्द फैसलों की सजगता को ‘value system’ से जोड़ते है कि life में कुछ तय नही किया जा सकता। आप बस परिस्थितियों के प्रवाह में बहते जाने को मजबूर है तो आप कभी भी अपनी स्थितियों को बदल नही सकते।‘

एक student के लिए जरूरी है कि वह दोस्तों और social media से ज्यादा study को महत्व दे। रिश्ते बेहतर बनाने है तो सहयोग, बडप्पन, करुणा और ईमानदारी जैसे मूल्यों को अपनाएँ। मियामी में माइंडसेट कोच जेनिफर एलिस का मानना है कि गलत दिशा में जितना भी आगे बढ़ जाए, वापसी के लिए कभी देर नही होती। कई बार अपने सपनों की दिशा में छोटा सा कदम बढ़ाना वापस हमें उस life की ओर ले आता है, जो हम चाहते है।

नियाग्रा सिंड्रोम के शिकार!

एक व्यक्ति नदी में नाव पर बैठा था। उसने नाव को प्रवाह के साथ बहने के लिए छोड़ दिया। आँख बंद किये बैठा व्यक्ति खुश था कि उसे अपनी energy खर्च नही करनी पड़ रही है। थोड़ी दूर पर नाव की गति तेज हो गयी। व्यक्ति ओर खुश हो गया। उसे लगा कि यात्रा जल्दी पूरी हो जाएगी। थोड़ी देर बाद लहरों से आवाज आने लगी। व्यक्ति को लगा कि वह संगीत सुन रहा है। अचानक नाव लड़खड़ाते हुए नीचे की ओर फिसलने लगी। तब व्यक्ति ने नाव को संभालने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ रहा। आलस व लापरवाही भरी यह सोच नियाग्रा सिंड्रोम कहलाती है। बिना मंजिल जाने और योजना बनाये खुद को प्रवाह के भरोसे छोड़ देना नुकसान ही करता है।







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