Sunday, February 4, 2018

Taking things to Heart (बातों को दिल पर लेना)


  
किसी ने किसी की तारीफ़ की। आप चिढ़ जाते है कि आपकी बुराई की गयी है। दरअसल हम हर समय दुखी होने के लिए आतुर रहते है और अपने भीतरी घावों को भरने नही देते। क्या वाकई सब हमें दुःख पहुँचाने के लिए बैठे है? ऐसा तो नही कि सामने वाला अपने ही घाव सहला रहा हो!

‘तुम्हे नही कहा था। वो तो बस एक बात थी। तुम्हारी problem क्या है, सब बात अपने पर क्यों लेते हों?’ रोजमर्रा में कई बार ये बात आपने दूसरों को कही होगी, तो कुछ ने आपको भी। क्या वाकई यह हमारे अपने स्वभाव की दिक्कत होती है कि हम किसी भी बात को झट अपने उपर ले लेते है?

मान लीजिये किसी ने कहा- मूर्ख हो, ये भी नही जानते? हो सकता है कि वह व्यक्ति आपको जानता ही न हो, या वह शब्द उसकी habits में शुमार हो, या फिर वाकई वह आपको नीचा दिखाना चाहता हो। जानकर कहते है कि अगर आप बुरा मानते है तो कहीं न कही आप मानते है कि आप वैसे ही है। और सामने वाले ने आपकी कमजोरी को पहचान लिया है।

हम खुद से जैसी बातें करते है, हमारी प्रतिक्रियाएं वैसी ही हो जाती है। यही वजह है कि कुछ लोग किसी अनजान की भी छोटी सी बात पर आपा खो बैठते है। दरअसल यह हमारे अपने अभावों की बेचैनी होती है। जब कोई अपनी सफलता और सुखी जिन्दगी की बात करता है तो हम सोचते है कि वह हमें चिढ़ा रहा है। सही या गलत, जब हर बात को हम अपने उपर लेते है तो दूसरों के जहर को अपने अंदर जगह दे रहे होते हैं।

bestseller ‘the for agreement’ के writer और spiritual master ‘दॉन मिखेल रुइस कहते है,’ खुद को बहुत important समझना या हर चीज को अपने उपर लेना अतिस्वार्थी होने का लक्षण है। हमे लगता है कि अब कुछ ‘मेरे बारे में है। जबकि दूसरे जो करते है, वह आपके नही, अपने कारणों से करते है। वह उनकी राय, उनके अपने मन के समझौते होते है।‘

सवाल उठ सकता है कि सामने वाला वाकई जान कर चोट कर रहा हो, तब दुःख कैसे नही होगा? ओशो अपने लेख ‘you carry your wound’ में लिखते है,’अंहकार हमारी पूर्णता को घाव में बदल देता है। हर कोई केवल अपने घावों की रक्षा कर रहा होता है। किसी की बात सुनकर आप दुखी होते है, क्योकि आप दुखी होना चाहते है। जितना अहंकार कम होगा, उतने ही दुखी कम होगे।‘ महात्मा गांधी ने कहा है कि कोई भी मुझे अपमानित नही कर सकता।

न करें खुद को परेशान

1-  जिस व्यक्ति की बात से दुखी है, उसके साथ अपने सम्बन्ध को देखे। क्या उसे खुश रखना आपके लिए मायने रखता है?

2-  जिसने कहा, उसके भाव,स्थिति, सोच के ढंग और बोलने की सीमाओं को समझें। हो सकता है कि वे वैसे ही बात करता हो।

3-  तुरंत प्रतिक्रिया न दें। मन का एक कोना ऐसा जरुर रखें, जहां किसी दूसरे को प्रवेश की इजाजत न हो।

4-  स्थिति को समझे। हो सकता है कि उस बात का आपसे सम्बन्ध ही न हों। फिर भी कुछ शंका है तो सीधे तौर पर पूछ लें।

5-  शांत दिमाग से यह अवश्य सोचे कि स्थिति विशेष में आपके सीखने के लिए क्या है?

6-  खुद पर विश्वास करना सीखें। जितना खुद को समझेगे, उतना ही दूसरों की स्वीकृति की जरूरत कम होगी।

7-  अपने आसपास वालों की मदद करें, उनके प्रति उदारता बरतें। ऐसा करना आप में आत्मसम्मान की भावना को बढ़ाएगा।






   


   

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